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Friday, March 24, 2006

One of my favorite poems!

रात yun कहने लगा मुझसे गगन का चाँद

रात yun कहने लगा मुझसे गगन का चाँद,
आदमी भी क्या अनोखा जीव HOTA है!
उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता,
और fir बेचैन हो जगता, न सोता है।

जानता है तू ki मैं kitna पुराना हूँ?
मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते
और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी
चाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते।

आदमी का स्वप्न? है वह बुलबुला जल का
आज उठता और कल fir फूट जाता है
kintu, fir भी धन्य ठहरा आदमी ही तो?
बुलबुलों से खेलता, kavita बनाता है।

मैं न बोला kintuु मेरी ragini बोली,
देख fir से चाँद! मुझको जानता है तू?
स्वप्न मेरे बुलबुले हैं? है यही पानी?
आग को भी क्या नहीं पहचानता है तू?

मैं न वह जो swapan पर केवल सही करते,
आग में उसको गला लोहा बनाता हूँ,
और उस पर नींव रखता हूँ नये घर की,
इस तरह दीवार फौलादी उठाता हूँ।

मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी
कल्पना की जीभ में भी धार होती है,
वाण ही होते vichaaronं के नहीं केवल,
swapan के भी हाथ में तलवार होती है।

swarg के सम्राट को जाकर खबर कर दे-
रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे,
rokiyeे, जैसे बने इन swapanवालों को,
swarg की ही ओर बढ़ते आ रहे हैं वे।

- दिनकर

* * *

Will translate it some day. By Ram Dhari Singh Dinkar;

Copied here from http://manaskriti.com/kaavyaalaya/ryklaga.stm and made corrections:
)
Another favorite is Aag ki bheekh by Dinkar http://manaskriti.com/kaavyaalaya/akb.stm


Another favorite is MADHUSHALA by Bachchan http://oldpoetry.com/opoem/50951 You can listen to Mannadey's rendition on Raaga.

More poems by Bachchan on http://hindipoetry.wordpress.com/tag/harivansh-rai-bachchan/
Though the two poems I really dig from him are Path ki pehchaan and Jo beet gayee so beet gayee

FINALLY found Dharamveer Bharati's Kanupriya poems: http://hindipoetry.wordpress.com/tag/dharmveer-bharti/ Fellow blogger ARDRA has done a wonderful job in translating these poems into ENGLISH!

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