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Sunday, November 11, 2007

क्या हिमाचल में ईंट सीमेंट के घर ज़रूरी हैं?

आज से दस बीस बरस पहले तक हिमाचल में गिने चुने पक्के मकान हुआ करते थे. ईंटों से घर बनाना बड़ी बात मानी जाती थी. मेरा ग्राम मण्डी जिले में है. वहां तकरीबन सभी मकान मिट्टी से बने, गोबर से लिपे और सलेट की छत्तों से सजा करते थे. ज्यूँ ज्यूँ तरक्की का दौर चला, भाम्बला और बरमाना में सीमेंट के कारखाने लगे, हजारों ट्रक सड़कों पर उतर आए, और अब जहाँ देखो ईंट सीमेंट के घर नज़र आते हैं. इस दौड़ में हर कोई शामिल है. हर एक बड़ा और बेहतर कोठे वाला घर चाहता है. कोई यह नहीं सोचता की क्या ईंट पत्थर से बने कोठे वाले मकान हिमाचल के लिए अनुकूल है भी या नहीं.

दस साल पहले तक मैं मात्र एक किशोर छात्र था, और मेरे विचारों का कोई मोल नहीं था. मोल शायद अब भी कुछ ज्यादा नहीं बड़ा है, पर अब लोग बात सुन लिया करते है. मैंने अपनी दादी और रिश्तेदारों से कई दफा बहस की, और यह जानना चाहा की क्या वह पक्के मकान इसलिए चाहते है क्यूंकि वह रहने के लिए बेहतर होते हैं? हमेशा जवाब मिला की पड़ोस में क्या इज्ज़त रह जायेगी, हर एक का पक्का मकान है. किस्सी ने कहा लीपा पोती से छुटकारा मिलेगा. कहा सीमेंट के मकानों की शोभा निराली है. कहा उनको साफ रखना आसान है, कोठे पर बैठ के धुप सेकेंगे. कहीं दो मंजिल, कहीं तीन, और कई जगह चार पाँच मंजिल के मकान उग गए. दस साल पहले भी वही जावाब मिलता था, अब भी वही जवाब मिलते है. पर एक फरक है. अब लोगों को आठ दस साल उन घरों में रहने का तजुर्बा हो गया है. अब मैं भी बड़ा हो गया हूँ, देश विदेश घूम चुका हूँ, और मेरी बातें अब एक शिक्षित और समझदार पौत्र या बुद्धिजीवी व्यक्ति की मान ली जाती हैं. अब फ़िर वही बहस करने की कोशिश कर रहा हूँ.

किसी से पूछो तो खुल के नहीं कहते की पक्के मकानों से वह नाखुश हैं. सबने इतना पैसा खर्च करके यह माकन बनाये है. कोई यह कैसे कहे की उमर भर की कमाई एक भूल में लगा दी. सच यह है की वह पुराने मकान गर्मी और सर्दी दोनों मौसमों में हमारे प्रदेश के तापमान के अनुकूल थे. आप आग्रह करेंगे तो यही बात मैं किस्सी शोध अथवा विज्ञान से भी सिद्ध कर सकता हूँ. पर किसी भी ज्ञान विज्ञान से बड़ी चीज़ होता है तजुर्बा. जब से पक्के मकान बने है, सर्दी में हीटर और गर्मी में कूलर या पंखों के बिना गुजारा नहीं होता. चूल्हे पक्के मकानों के लिए कभी भी उपयुक्त थे हो पाएंगे. सर्दी में फर्श इतना ठंडा होता है, की पाँव ज़मीन पर नहीं धर सकते. गर्मी में भी इतना तपा होता है, की पाँव ज़मीन पड़े टे ही अच्छा है. अब चूल्हों की रोटी की आदत, नंगे पाँव फिरने की आदत तो जाने से रही. ऊपर से कमबख्त मौसम. बरखा में तो कोठे ताल बन जाते है. पर चाह कर भी कोई पुराने कच्चे घरों में वापिस नहीं जा पाता. सिर्फ़ वह घर सस्ते दाम में बनते है, उनसे बिजली की खपत कम होती थी, और वह हमारी ज़रूरतों के हिसाब से हमारे पुरखों के तजुर्बे के बाद हमें मिले थे.

यह कहकर कि मैं तरक्की नहीं चाहता आप मेरी कही हुई साधारण, पर सच बातों को ठुकरा सकते है. यह कह कर कि मैं ठहरा प्रवासी हिमाचली, आप मेरी बातों को अनसुना कर सकते है. पर अगर आप एक बार बैठ कर हिसाब लगाये, तो आप पाएंगे की हम हिमाचली लोगों को मूरख बनाया गया है. क्या आप बर्फ के दिनों में धोती या निक्कर पहन कर बहिर घुमते है? क्या आपके पास इतना पैसा है की आप पूरे घर को गरम रखने वाली विदेशी मशीनें खरीदें? जो चीज़ें जिस जगह के लिए उपयुक्त नहीं, उनका पाना, उनका होना किसी विलास कि निशानी नहीं. जहाँ लोग बड़े घरों को इज्ज़त का मापदंड बना लेते है, वहाँ चोरी डकैती रिश्वतखोरी से कमाया धन जायज लगने लगता है. अंधी होड़ कोई प्रगति का द्योतक नहीं.समय के साथ चलना अगर ज़रूरी है, तो अपनी स्तिथि परिस्तिथि के अनुसार जीना, पाँव फैलाना और फैसले करना भी समझदारी है,सही है. रोटी, कपड़ा और मकान हमारी तीन मुख्य ज़रूरतें है, थी और रहेंगी. हमने विदेशी भोजन या बिकिनी-नुमा वस्त्र अपनाएं है. पर मकानों में यह बेमतलब नक़ल क्यों?

3 comments:

Vivek Sharma said...

Comments from himachal.us

2 Responses to “क्या हिमाचल में ईंट सीमेंट के घर ज़रूरी हैं?”

परमजीत बाली on November 12th, 2007 6:06 am आप की बात विचार करनें योग्य है…बाहरी तड़क-भड़क से सच में कूछ बदलता नही …परिवर्तन तो इंन्सन के भीतर होना चाहिए…बड़े-बड़े पक्के मकानों का मतलब यह कदापि नही होता कि आदमी सुखी हो जाता है…लेकिन जरूरत के अनुसार कार्य करनें में…..अपनें हित को ध्यान में रखते हुए बदलनें मे परहेज नही होना चाहिए।

एस डी जालिम on November 12th, 2007 10:24 am देखिए विवेक जी मैं भी हिमाचल से हूं। हिमाचल के तो कच्चे मकान बहूत सुन्दर होते हें यहां तक कि एक तरह से दो मंजिले भी। पर बदलते परिवेश के साथ हमारा बदलना भी जरूरी है। ऎसा नहीं हे कि पक्के मकान फायदेमन्द नहीं हें उनमें सुरक्षा है। फिर हिमाचल का हित ही तो हम सब चाहते हैं। लेख बहुत सुन्दर था। ऎसे ही मुद्दे उठाते रहें।

Madhuri said...

I was in Himachal last week and was wondering about this too, though for a different reason. The cement houses look very unseemly against a hilly terrain and somehow look unsuitable to the surrounding. So apart from being ineffective in keeping the temperature moderate, the cement houses are rather ugly too compared to the mud houses.

PS: Apologize for replying in English to a Hindi post, but I have yet to familiarize myself with posting in Devnagri

Vivek Sharma said...

विवेक शर्मा on November 13th, 2007 1:14 pm ज्यादातर गाँव में घर काफ़ी पास पास होते हैं. इसलिए मिट्टी के पक्के मकान लगभग एक बराबर सुरक्षित हैं. बहुत से पुराने घरों में पहली मंजिल में पत्थर की दीवार हुआ करती थी, और वो कमरे दूसरी मंजिल से ज्यादा सुरक्षित माने जाते थे. धान कनक आदि रखने के लिए भी जो अनाज्घर बनता था, उसका तापमान सब महीने उपयुक्त रहता था.

हिमाचल का विकास किसी दूरदर्शी निति या सोच का नतीजा नहीं. इसलिए परवानों, बददी, महतपुर, जैसे भारत में सबसे प्रदूषित माने जाने वाले शहर भी हिमाचल में है. सीमेंट के कारखाने और उनसे जुड़े ट्रक भी हिमाचल में है.

अजीब और गरीब घर बनते है पर्वतों की धारों पर,
ईंट और सीमेंट के कारखानों की रौनक बडाई है,
और उनमें धंसते हैं हम, पैसा गिनते है किनारों पर,
बाहरी उद्योगपति, नेता, हमने मिट्टी की अपनी कमाई है.