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Saturday, November 29, 2008

Aatank, Ahimsa, Vardi, Hindutva Aur Hum

(Composed for Divya Himachal, newspaper and for My Himachal, NGO)

आतंक, अहिंसा, वर्दी, हिंदुत्व, राजनीति और हम
- डॉ. विवेक शर्मा

पिछले कई दिनों के घटनाक्रम में मुंबई एक छलनी शहर बनके उभरा है | हर एक भारतीय, चाहे वो देश में बैठा हो या परदेश में, आतंक, अहिंसा, वर्दी, हिंदुत्व एवं राजनीति से जुड़े सवालों से घिरा है | ऐसा क्यूँ हुआ, क्या दोबारा फिर ऐसा होगा, क्या हमारे संतरी-मंत्री देश और नागरिकों के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं, या यह सब कर्मों का फल है, भाग्य है, स्वाभाविक है? सोचा जाए तो आप पायेंगे कि पुराण, रामायण और महाभारत इतियादी आदि ग्रंथों में भी आंतक फैलाने वाले असुरों का ज़िक्र होता आया है | असुरों के नाम बदल जाते हैं, ग्राम बदल जाते हैं, पर मकसद वही रहते हैं | आदि समय में हम अवतारों के लिए प्रार्थना करते थे, और क्यूंकि वह सतयुग था तो अवतारों ने प्रकट हो कर हमारी रक्षा की |

पिछली बीस शताब्दियों में आतंक बाहरी मुलकों से आने वाले हमलावर हुआ करते थे | इनका सामना करने के लिए हाड-मास का जिस्म, पर शेर का जिगर लिए महाराणा प्रताप, शिवाजी, गुरु गोबिंद सिंह सरीखे योधा पनपे | साथ ही कबीर, तुलसी, रहीम, सूरदास, जैसे कवियों ने भक्ति को शान्ति और भाईचारे का जरिए बनाया | आजादी मिलने से पहले महात्मा गांधीजी और अनेकों नेताओं ने ब्रिटिश राज से प्रतंडित देश को फ़िर उठ कर चलने का सपना दिया, राह दिखाई | वहीं विवेकानन्द, बंकिम, टैगोर, दयानंद, राममोहन राय, आदि लेखों और समाज सुधारकों ने हमारी अपनी कुरीतियों और कमजोरियों से निजाद पाने के ज़रिये निकाले | तुलसीदास जी ने कहा है: जड़-चेतन गुण दोषमय, विशव किन करतार" | हर सांसारिक वस्तु-अवस्था गुण और दोष से भरी पड़ी है | पर यदि आतंक, लालच, शोषण और बिमारी फैलाने वाली कुशक्तियाँ कम नहीं, तो अहिंसा, शान्ति, स्म्रिधि, सुख और संतोष जगाने वाली शक्तियां भी कम नहीं |

शायद यह हमारे देश का सौभाग्य रहा है कि दुश्मन कोई भी हो, कैसा भी हो, हमारी मातृभूमि निरंतर ऐसे महापुरुषों को पनपती है, जो हमें फिर राज़ी-खुशी जीने लायक बना देती है | इक्कीसवीं सदी में भी हम आतंक, भ्रष्टाचार, भौतिकवाद के बड़ते प्रकोप को देख रहे हैं | अब हम सब के लिए यह ज़रूरी हो गया है कि हम अपने धरम, अपने कर्मों को जाने, उनका जायजा लें | उपनिषद् के मंत्र "ॐ अस्तोमा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृतोर्मा अम्रितंगम्य" को आत्मसात करलें | हमें अवतारों, महात्माओं, महापुरुषों के प्रकट होने तक आतंक अवं सभी सामाजिक कुरीतियों से ख़ुद लड़ना होगा | मैं आपसे आग्रह करूँगा कि दिनकर जी की परशुराम की प्रतीक्षा पड़ें, विशेषकर यह पंक्तियाँ:
" जातीय गर्व पर क्रूर प्रहार हुआ है,
माँ के किरीट पर ही यह वार हुआ है।
अब जो सिर पर आ पड़े, नहीं डरना है,
जनमे हैं तो दो बार नहीं मरना है।"

देश की बागडोर हम जिन नेताओं के हाथ में देते हैं, वह असक्षम हैं, तो उसमें शायद हमारी खोटी वोट का योगदान है | हमारा प्रशाशन, पुलिस और मंत्री यदि भ्रष्ट हैं, तो उनको भेंट या भत्ता देने वाले भी हम हैं | हमारे युवा अगर बाहरी बहलावे में आकर हमीं पर गोलियाँ दागते हैं, तो शायद हमारे संस्कारों, हमारी शिक्षा प्रणाली में कोई कमीं रह गई है | या शायद हम खोखली अमीरी - बड़ी गाड़ी, बड़ा घर - के नशे में यह भूल गए हैं, कि हम मिट्टी के जने सब मिट्टी हो जायेंगे | अहिंसा का पाठ हमने पड़ा हैं, पर अहिंसक अगर ख़ुद एक चट्टान हो, तो उसपर हलकी-फुलकी हिंसा का कोई फर्क नहीं पड़ता | हम यदि हिंदू हैं बड़े-बुडों का मान, कर्मठता, श्रधा, इमानदारी, अध्ययन-मनन-चिंतन हमारे स्वाभाविक गुण होने चाहिए | परन्तु हम इस संसार में अपनी सैंकडों कमियों से युक्त आते हैं, और कुछ ही से मुक्त हो पाते हैं | उस मुक्ति के ले लिए जैसे हमें आजीवन संघर्ष करना पड़ता है, वैसे ही शायद देश कि हजारों कुरीतियों, कमियों, खामियों से मुक्ति का सफर भी लंबा और भीषण करना होगा | यह शोक समय है दोस्तों, पर शोक के बाद मरहम भी हमें ही बनाना है, और आतंक और अन्य तामसिक शक्तियों से जूझने के लिए योधा भी, तलवार भी, और ढाल भी |

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