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Thursday, January 29, 2009

On Himachal Sansthapna Divas: Vikas ke liye uttardayi kaun?

युवकों के प्रति, हिमाचल के संस्थापना दिवस पर

विकास के लिए उत्तरदायी कौन?

हर वर्ष प्रदेश और देश के मंत्रीगण करोडों रुपयों के आय-व्यय की बात कहते हैं | विकास के लिए उठाये जाने वाले कदमों की सराहना होती है | सत्तापक्ष और विपक्ष एक दूसरे के निर्णय और सोच की निंदा करते हैं | फ़िर पानी बरसता है, और कई पुल और सड़कें बह जाती हैं | सरकार मेडिकल या इन्जिनीरिंग कालेज बना देती है, विद्यार्थी भरती हो जाते है, और फ़िर मालूम पड़ता है कि मूलभूत सुविधाओं कि कमीं के कारण राष्ट्रीय स्टार पर डिग्री मान्यता प्राप्त ही नहीं है | शिलान्यास होता है, रिब्बन कटता है, तालियाँ बजती हैं, और फ़िर सिर्फ़ नामधारी शिला रह जाती है और वादे भुला दिए जाते हैं | हमारी कोशिशों में क्या कमीं रहती है कि सही निर्णय भी एक वर्ष के बाद एक टूटे पुल की तरह अधूरा और अनावश्यक नज़र आता है? इन अधूरी सडकों पर चलकर कैसे हिमाचल आर्थिक और सामाजिक विकास कर पायेगा? इन विफलताओं का उत्तरदायी कौन है?

उत्तरदायित्व एक महत्वपूर्ण शब्द है, क्यूंकि इसको समझकर मनुष्य कर्मशील बनता है, और नियत और नियम को समझने लगता है | नियत को बाधें रखने के लिए नियम बनाये जाते हैं, और यदि नियम और नियत सही हों, तो मानव कर्तव्य के प्रति जागरूक रहता है | गिरती हुई इमारतें बनाने वाले मिस्त्री, ठेकेदार, पी. डव्लू. डी. के अधिकारी नियम की उलहना करते हैं, नियत से अपने लिए संपत्ति इकत्रित करने के लिए समूह का नुकसान करते हैं | ताज्जुब मुझे इस बात का नहीं कि लोग अपने स्वार्थ के लिए सीमेंट में रेत मिलते हैं, या टोल टैक्स का पैसा जेब में भर लेते हैं | ताज्जुब इस बात का भी नहीं की राजनीती के नाम पर मुद्दों को उछाला जाता है, और फ़िर भुला दिया जाता है | ताज्जुब इस बात का है कि वादों से मुकरने वालों, बार बार अधूरे या टूट जाने वाले पुलों को बनने वाले, बार बार विद्यार्थियों को पढाये बिना पगार पाने वालों, रिश्वतखोरी से अचानक अमीर बन जाने वाले लोगों को हम जब पहचान भी लेते है, उनका बहिष्कार नहीं करते | यह नहीं करते कि उनका धंदा-पानी मंदा पड़ जाए | पर हम उनको मॉफ किए बिना, उनके अपराधों को स्वीकार कर लेते हैं | ऐसे में अगर विकास मंच पर बैठा बुत है, अगर हमारी समस्याएँ ज्यूँ कि त्यूँ है, तो इसके उत्तरदायी भी क्या हम नहीं?

मसले कई हैं | कुछ के लिए सरकार नाम की अदृश्य संस्था को दोषी भी नहीं ठहराया जा सकता | पिछले साल नैना देवी में अनेकों बच्चे, बुडे, जवान एक भगदड़ में मारे गए | ऐसा क्यूँ हुआ? मैं इश्वर-धर्म-शास्त्रों को मानता हूँ, पर मैं ऐसे हादसों को दैविक प्रोकोप नहीं मान सकता | मंदिरों के बहिर की बेकाबू भीड़, धक्का-मुक्की, चीखना-चिल्लाना, दुगने दामों पर पूजन सामग्री का बेचना-खरीदना हमारे धर्म-संस्कारों के प्रति असम्मान दर्शाते हैं | जिस रोग का उपचार मौजूद हो, जिस हादसे को रोकने कि विधि आती हो, उसके लिए दवा लेना, सही कदम उठाना हमारी सोच, शिक्षा और आचार की अदूरदर्शिता, अशक्षमता के द्योतक हैं | एक वैज्ञानिक और इंजिनियर की तरह सोचता हूँ तो पाता हूँ कि हमारे प्रदेश में ऐसी घटनाएँ सिर्फ़ इसलिए होती हैं क्यूंकि हम डंगों की मजबूती, भीड़ के विस्तार, बाड़ों में नदियों के वेग, अनियमित संपत्ति संग्रहण जैसी गणनीय, नापी-तोली-जाँची जा सकने वाली चीज़ों का पूरी तरह निरिक्षण और लेखांकन नहीं करते | तो अब प्रश्न यह उठता है कि ऐसा निरिक्षण कौन करे?

लीजिये अब हम असली काम कि बात करते हैं | मंदिरों के आस-पास मूल-भूत सुविधायों का जायजा भक्तों-पुजारियों और मन्दिर प्रबंधन कमेटी वाले ही नहीं देखें बल्कि मेरे हिसाब से शिक्षित और जागरूक नागरिक भी इसमें हिस्सा लें | जहाँ समाचार पत्र और सरकार धांधलियों को छुपाने कि कोशिश करे, वहां हम अपने वोट और आवाज़ के बलबूते पर मुद्दों पर ध्यान बनाये रखें | पर यह सब होगा कैसे, करेगा कौन? हमारे प्रदेश में सैंकडों युवक कालेज में पड़ते हैं, (या पढाई के नाम पर स्कूल-कालेज जाते हैं), पर इसके अलावा न्यूनतम काम करते हैं | विदेशों में पन्द्रह वर्ष की उमर के बाद से ही बच्चे छोटे-मोटे काम करना शुरू कर देते हैं | मेरी राय यह है कि अगर सत्रह से बाईस वर्ष का हर विद्यार्थी जुट जाए, तो बहुत से रुके काम चल पड़ेंगे |

सो अब पहला काम यह करें कि हर कालेज में एक अचार-प्रचार-विचार समूह बनायें | हर साल दो या तीन मसलों को पहचान कर उनके लिए काम किया जाए | जैसे रेणुका और गोबिंदसागर झीलों में श्रमदान के द्बारा सफाई कि जा सकती है | ऐसे श्रमदान के बाद मन्दिर या गुरुद्वारे में सबको लंगर खिलाया जाए | कुल्लू में हथकरघे से निकले शालों और टोपियों को विश्व बाज़ार में कैसे बेचा जाए सोचा जा सकता है? क्या हिमाचल में बनने वाले बाँध सचमुच हमारे वनों और वातावरण पर बुरा असर नहीं डालते के बारे में शोध जरुरी है | स्कूलों में जहाँ शिक्षक नहीं है, वहां जा कर बच्चों को पाठ पडा सकते हैं | हर शहर में सफाई के प्रति ध्यान देने कि ज़रूरत है | हर त्यौहार: विशेषकर होली-दिवाली के पहले और बाद सफाई का ज़िम्मा युवक लें, रंगों-पटाखों से भरी गलियों को साफ़ करने के लिए | हर पंचायत क्षेत्र में किसी भी आपातकालीन परिस्तिथि, जैसे किसी रोग का फैलना, डंगों का खिसकना से ले कर नियम के काम जैसे कुलों का रुकना-बंद हो जाना, का जिम्मा युवक लें | मेडिकल डाक्टर शिविर लगा कर इलाज़ करें, और शिविर चलाने के लिए उन इलाकों के युवक आगे आयें |

समस्याओं को समझ कर उनका समाधान करना एक मुश्किल परन्तु सुखदायी उपक्रम है | इसके लिए किसी उपरी शक्ति का इन्तजार नहीं किया जा सकता, पर यह तय है, कि सुकर्मों में सहयोग धीरे-धीरे मिलता है, पर मिलता ज़रूर है | हमें ख़ुद का उत्तरदायित्व तो समझना ही चाहिए, परन्तु अनियामत्तों को पहचान कर परिस्तिथियों को बदलने का सहस और प्रयास भी करना चाहिए | इसी प्रयास इसी साहस को लिए कई प्रयत्न जैसे माई हिमाचल, आशा, ऐड इंडिया, इतियादी मुझसे युवकों के सहारे से चल रहे हैं, और समाज के विकास के प्रति कोशिशें करते जा रहे हैं | पर हम विदेश से एक सीमित सोच, समर्थन और सहयोग ही दे सकते हैं, सरकार और इश्वार भी हर समस्या के समाधान लिए रोज़ उपलभद नहीं हो सकते | मेरे दोस्तों, मेरे देश के नौजवानों, इस वर्ष क्यूँ आप उत्तरदायी बनें? सौ हाथ अगर साथ सडकों पे निकालेंगे तो निश्चय ही कर गुज़रेंगे कुछ ख़ास!

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