Labels

Friday, June 05, 2009

Niwalon par nibandh (Hindi/poem)

मैं निवालों पर निबंध हूँ

मैं निवालों पर निबंध हूँ,
प्रेयसी मेरी भूख रही है
अटल रही है, अटूट रही है,
इस उदर की ज्वाला से ही
झुलसी नीयत स्पष्ट रही है,

हर साँस को कर्म से, कठिनाई से
पाया है मैंने,
हर नींद में स्वप्न्हीन विराम
पाया है मैंने,

मैं ही पथिक, मैं ही पथ हीन
मैं ही पथ बनाता भी हूँ,
इन कारखानों, करघों को पूजता
मैं ही इन्हें चलाता भी हूँ,
धूल से धुला मैं ही
धूल में मिला मैं ही
गर्द से गुल बनता और बनाता मैं हूँ,

मैं ही घाटों पर पीटता वस्त्र
मैं ही वस्त्र-हीन,
मैं ही फुटपाथों पर लेटता,
बिस्तरों को सजाता मैं ही,
मैइली चादरों को ओड़ कर
तन को छुपाता मैं ही,

मैं ही तो खेतों में बीज-सा धँसता,
पसीने का सावन उढेलता,
और मेघों का प्यासा मैं ही,

और मेरी पूँजी, बस पाँच उंगलियाँ,
एक पेट, थोड़ी नींद, कुछ किस्से
और एक ज़िंदगी
जो रोज़ नई चुनौती है |

6 comments:

Blue Athena said...

reflective...

jacky said...

hey tum to bhut accha likhate ho

Unknown said...

उत्क्रिस्ट रचना लिखते रहे

Rakesh K. said...

very touching!!

Unknown said...

आपकी रचना शैली कुछ अलग है....इसे जिंदा रखना

Addie F said...

Thanks for this