Tuesday, December 30, 2008

2009 ke liye navkamnayen (Hindi Poem: New wishes for a new year)

२००९ के लिए नवकामनाएं
डॉ विवेक शर्मा

आने वाले वर्ष में तेरी राहें सरल न हों,
वह जाम ही क्या जिसमें सुधा-मिश्रित गरल न हो?

यूँ हो की ठोकरें लगती रहें, तृष्णा तीखी रहे,
तुझे हर पल संघर्षरत होने की अनुभूति रहे |
कब सरल जीवन में मनुष्य उत्कर्ष पाता है?
किसी रण से, भीष्म प्रण से, सुयश आता है |
तू क्यूँ अनाम रहे? क्यूँ तुझे आलस, आराम रहे?
मैं चाहता हूँ तुझे निरंतर कुछ कर गुजरने का अरमान रहे |

वह पिता जो पुत्र की सम्पूर्ण उन्नति चाहता है,
वह दशरथ अपने राम को राज्यहीन, दरिद्र छोड़ जाता है,
देता है उसे बस संकल्प, संस्कार, सुशिक्षा, स्वपन,
उसके धर्मं-कर्म में नहीं बाधा बनाता है |
इसलिए पूँजी नहीं, तुझे केवल कठोर प्रशिक्षण दूँगा,
वनवासों से निकलने, निखरने हेतु बल-बुद्धि विलक्षण दूंगा |

माँ का असली दुलार पुत्र को प्रतिबिम्ब दिखाने में है,
मोहनदास में धर्मात्मा, शिवाजी में जननेता जगाने में है,
विपत्ति में न दुलार, न विलास, न लक्ष्मी, न रति साथ निभाते हैं,
पर सुदामा-मीरा सा कृषण प्रेम, विद्याधन, संचित सुकर्म पथ दिखलाते हैं,
इसलिए प्रातः शास्त्रार्थ, दोपहर विज्ञान, सांझ साहित्य का चिंतन दूंगा,
तुझे अपने चित्त की सीमाओं को जानने, लाँघने का निमंत्रण दूंगा |

और शुभकामनाएं दूंगा यही, कि आने वाले वर्ष में.
तेरा पल-पल बीते स्वविश्लेशन में, संघर्ष में |

2 comments:

  1. Hi Vivek!Posted a comment earlier looks like it didnt get through...
    आने वाले वर्ष में तेरी राहें सरल न हों,
    वह जाम ही क्या जिसमें सुधा-मिश्रित गरल न हो?
    and
    वह पिता जो पुत्र की सम्पूर्ण उन्नति चाहता है,
    वह दशरथ अपने राम को राज्यहीन, दरिद्र छोड़ जाता है,
    देता है उसे बस संकल्प, संस्कार, सुशिक्षा, स्वपन,
    उसके धर्मं-कर्म में नहीं बाधा बनाता है |
    and this too
    वह पिता जो पुत्र की सम्पूर्ण उन्नति चाहता है,
    वह दशरथ अपने राम को राज्यहीन, दरिद्र छोड़ जाता है,
    देता है उसे बस संकल्प, संस्कार, सुशिक्षा, स्वपन,
    उसके धर्मं-कर्म में नहीं बाधा बनाता है |
    Wah kaviraj!Awesome is the word that comes to mind....Keep writing so beautifully....:)
    Varsh kuchh nayi chunautiyaan lekar aaye aur unse ladne ka saahas bhi de...yahi kaamna hai..:)

    ReplyDelete
  2. Just stumbled on your blog, a very nice read. Aap Bhaarat se itna door rehkar bhi itne bhaartiye hein, jaanakar prasannta hui :).

    ReplyDelete