कभी फुर्सत में मिलेंगे, एक जाम थामे,
कुछ गज़लें कहेंगे सुनेंगे,
कभी शांति से बैठेंगे, किसी पहाड़ी झील किनारे,
पंछियों के गीत टहनियों में तलाशेंगें
अभी मैं तनहा बैठ कर, खुद से सलाह करलूं,
सत्य-साहित्य-विज्ञान से, मुलाकातें अथाह करलूं,
क्या अर्थ है, क्या बाट हो, कैसे गीत हों पग पग पर,
अभी मैं सवालों के सारे स्वरूपों से स्वयं का श्रृंगार करलूं,
अभी ऋण है मुझपर कई सपनों का,
कई अपनों की अधूरी इच्छायों का हासिल एक मुकाम करलूं
कभी फुर्सत से मिलेंगे,
अभी इन चुनौतियों से भिड कर, कुछ घावों से सज लूँ,
कभी फुर्सत से मिलेंगे,
अभी जिंदगी से किये वादों का सम्मान करलूं!
अपने मनोभावों को बहुत बढिया ढंग से पेश किया है।बधाई।अच्छी रचना है।
ReplyDeletekitni saralta se
ReplyDeleteitna acha likh lete hain aap ..
very nicely written