छींकने तक की फुर्सत किसे, कहाँ आजकल,
पल पल फोन, इ-मेल, है भगदड़ आजकल,
चाहे कोई कितना भी कमाए धन,
चाहे कितना भी सराहा जाये तेरा प्रयत्न,
सब पाया-गवाया यहीं जाएगा,
धुआं-रख होने का तेरा भी दिन आएगा,
या तेरे अपने जिनसे प्रीत, जिनपर मान तुझे,
ऐसी दौड़-भाग में जायेंगे कब पहचान तुझे,
कब उनको तो दुलार दे पायेगा,
कब उनका संसार बन पायेगा?
सफलता क्या है, किस चीज़ का है मान तुझे?
आ चल, संग-संग बैठें-सोचें ये गुत्थी सुलझे |
सोने, खाने, जीने के लिए काफी है छोटा घर,
कुछ अनाज, फल, कुछ उपास, ऊन, एक प्रियवर,
पिता को यश, माँ को शायद शांति-सुख का सामान चाहिए,
पुरुष को पुरुषार्थ, पितृ-पुत्र धर्मं, निभाने का प्रावधान चाहिए,
नारी को भी संतुलन कर्म का, और मातृत्व का वरदान चाहिए,
हर प्रीति, हर सुखानुभूति के लिए दोस्त संतुलित इंसान चाहिए,
संचय में सर्वदा कोई तुझसे आगे रहेगा,
सोचेगा इतना और, इतना और, तो भागे रहेगा,
इस होड़ में, नयेपन के कोड़ में, बहता चलेगा,
तो इसे ही बेहतर, जीवनदर्शन कहता चलेगा,
संशय नहीं अभी, जवानी है, जिंदगानी है सामने तेरे,
शायद थिरकन पाओं में, हृदय में हैं सिर्फ स्वपन सुहाने तेरे,
फ़िक्र किसकी नहीं, कोई हिचकी नहीं, आज है बस तेरा निलय,
अभी अकेला है, हर रस, रंग, रति को तूने चखा, चाहा है,
तेरे पास कुछ कर गुजरने, कुछ बन जाने का निश्चय बेतहाशा है,
फ़िक्र किसकी नहीं, कोई हिचकी नहीं, आज है बस तेरा निलय,
पर कब तब रहेगा वसंत, क्या कुछ भी है अनंत?
जान, होड़ में होश कैसा? नियति क्या नहीं वो अंध?
English and Hindi poetry & prose, published as well as unpublished, experimental writing. Book reviews, essays, translations, my views about the world and world literature, religion, politics economics and India. Formerly titled "random thoughts of a chaotic being" (2004-2013). A short intro to my work: https://www.youtube.com/watch?v=CQRBanekNAo
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