-- इंदु मैम के प्रति
--विवेक शर्मा
आलंकृत करूँ किस आशा से जीवन को?
मृत्यु ले गयी छीन मुझसे एक और प्रियजन को ||
परिचय क्यूँ पूछते हो उस स्मृति का?
कुछ वर्ष ही रहता है स्मरण आकृति का |
यश बस रहता है पुण्य प्रवृति का,
संस्कारों से युक्त संतति का,
जागृत कर सैंकड़ों विद्यार्थियों की ज्ञान-लगन को,
अमर नाम कर, मोक्ष पा गयी, त्याग कर तपोवन वो ||
एक अध्यापिका थी, मेरे लिए माता-पिता थी,
धैर्य से भरी रही, हम बच्चों के प्रति खरी रही,
"आओ तुम्हें चाँद पे ले जाएँ" गीत गाती थी,
हमारी बचकानी बातों पर मंद-मंद मुस्काती थी,
देकर दिशा करके मेरे बचपन के आराधन को,
चली गयी छोड़ संसार को, कर गयी पलायन वो ||
अर्पित करूंगा अश्रु नहीं, पुष्प नहीं, बस प्रण एक
शिक्षा के क्षेत्र में कहूँगा पुस्तक से है प्रेरणा श्रेष्ट,
रटकर पुस्तकें कहाँ से पोथियाँ पढ़-पढ़ ज्ञानी उभरते है?
संस्कृति के सभी सुजन संस्कार, सत्संग, सुरुचि से निखरते हैं,
देकर दीक्षा, शिक्षा, संसाधन हमारे सुखद भविष्य के सृजन को,
जीवंत रहेगी सदा बनके एक सद्भावना, स्नेह का स्मरण वो ||
(PS: Mrs Indu Singla was one of the most well-regarded and beloved teachers at my alma mater, St. Mary's Convent School Kasauli, Himachal Pradesh. She taught me history and more importantly the value of compassion in a teacher.)
(PS: Mrs Indu Singla was one of the most well-regarded and beloved teachers at my alma mater, St. Mary's Convent School Kasauli, Himachal Pradesh. She taught me history and more importantly the value of compassion in a teacher.)
1 comment:
Touching composition and feeling behind them.
May her soul rests in peace.
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