दोस्त लई
तू फ़िक्र कोई न करियो दोस्त, न घबराइयो न डरियो दोस्त,
उम्र दा मामला है, तू जलदबाज़ी में कदम न धरियो दोस्त |
दूर से कुछ और लगती है, करीब से देखो कुछ और निकलती है,
यह माया से भरी गलियां हैं, तू आँखें खुल्ली रखियो दोस्त |
पिच्छे क्या छुटया, क्या करना? तू तेरे आँखें आगे देखें, तू आगे बड़ना,
किवाड़ जो बंद कर आया, उनके चौखट पे सर न पटकियो दोस्त |
हुआ कुछ भी न गर साल, चार साल, या लात, हड्डी, पसली टूटी,
घाव भर जानगे, फसलां उग जानगी, तू क्लेश न करियो दोस्त |
चाव कर कितना भी, जो पाया-गंवाया यहीं रह जाना है,
तू लकड़-पत्थर-लश्कारे लई, कर्म फोड़, जन्मां दा ह्रास न कर बैठियो दोस्त |
चिल्लर लेकर चलने वाले बैठे हैं भिखारी गली-गली, भ्रष्टाचारी महल-महल,
तू मयंक है, कौवा नहीं हंस है, तू अम्बर की ऊँचाइयाँ पर रहियो दोस्त |
बंद कर मुट्ठी, दे सर पे चोट, जान है अर्थ क्या, व्यर्थ क्या, सिद्दार्थ क्या,
कर ईमान बुलंद, उठ कर आँख खुली, हौंसले और विवेक दा दामन न छडियो दोस्त |
(Written in a very colloquial tone, perhaps in the tone and style of conversations in my Chandigarh hostel: while listening to the audio, imagine two friends sitting in a room, and one giving advice to the other.)
(Written in a very colloquial tone, perhaps in the tone and style of conversations in my Chandigarh hostel: while listening to the audio, imagine two friends sitting in a room, and one giving advice to the other.)
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