बहुत दिन बीते… कुछ ख़ास कहा लिखा नहीं । एक ढर्रा है जिंदगी, रोज़मर्रा एक आदत है, और वक्त है किसी नदी सा, बस बहे जाता है, बहे हैं । इस भाग-दौड़ की दुनिया में कोई बैठ कर क्यों लिखे, कोई किसी का लिखा क्यों पढ़े? और पढ़े भी तो हिंदी में लिखा कौन पढ़े?
यूँ सरपट दौड़ते-दौड़ते, ख्यालों के कितने पनघट पीछे छोड़, मैं एक अरसे से निःशब्द रहा हूँ । काव्य एक साधना है, कल्पना और रचना निःशब्द रह कर भी की जा सकती है, पर अनकही, अनसुनी कल्पना और रचना मिथ्या है । चार कदम भी नहीं चलता, जब शब्दों के झुरमुठ आ आ कर, गुनगुनाने लगते हैं । कोई भँवरों की गुँजन सी, कोई पहले प्यार की चुभन सी, किसी हार की अधभूली टीस, कभी करुणा, कभी क्लेश मेरे अंतरमन के भवसागर में शब्द, वाक्य और छंद ऐसे उठा देते हैं, जैसे समंदर-ताल से निकलने को तैयार बुलबुलें हो । पहले यहाँ -तहाँ बैठ झट से इन मचलते, चंचल, क्षणभंगुर भावनाओं को कागज़ों पर जकड़ लिया करता था पर कुछ महीनों से उस आदत को भी विदा दे दी है ।
क्या करूँ, काव्य को कलह का कारण, कारक कैसे कहूँ? यह दुविधा मेरे लिए नई नहीं, बरसों से नावों में सवार मैं दो भिन्न से दिखने बाले घाटों की ओर खींचता आया हूँ । आज जैसा कोई दिन आता है, याद दिलाता है कि मेरे अंतर का कवि मेरे पालक और साधक शिक्षक-विज्ञानिक अवतार के जतन या प्रताप से प्रताड़ित या प्रभावित हो मूक हो गया है । इस चुप्पी को तोड़ने के लिए और कवि को कलम और उसके पूरक और प्रेरक पाठकों से जोड़ने के लिए, मैं अपनेआप से वादा करता हूँ, कि कैसे न कैसे हर हफ्ते मैं इसी ब्लॉग पर कोई कविता, कल्पना, टिप्पणी जरूर प्रकाशित करूंगा ।
प्रणाम
विवेक
यूँ सरपट दौड़ते-दौड़ते, ख्यालों के कितने पनघट पीछे छोड़, मैं एक अरसे से निःशब्द रहा हूँ । काव्य एक साधना है, कल्पना और रचना निःशब्द रह कर भी की जा सकती है, पर अनकही, अनसुनी कल्पना और रचना मिथ्या है । चार कदम भी नहीं चलता, जब शब्दों के झुरमुठ आ आ कर, गुनगुनाने लगते हैं । कोई भँवरों की गुँजन सी, कोई पहले प्यार की चुभन सी, किसी हार की अधभूली टीस, कभी करुणा, कभी क्लेश मेरे अंतरमन के भवसागर में शब्द, वाक्य और छंद ऐसे उठा देते हैं, जैसे समंदर-ताल से निकलने को तैयार बुलबुलें हो । पहले यहाँ -तहाँ बैठ झट से इन मचलते, चंचल, क्षणभंगुर भावनाओं को कागज़ों पर जकड़ लिया करता था पर कुछ महीनों से उस आदत को भी विदा दे दी है ।
क्या करूँ, काव्य को कलह का कारण, कारक कैसे कहूँ? यह दुविधा मेरे लिए नई नहीं, बरसों से नावों में सवार मैं दो भिन्न से दिखने बाले घाटों की ओर खींचता आया हूँ । आज जैसा कोई दिन आता है, याद दिलाता है कि मेरे अंतर का कवि मेरे पालक और साधक शिक्षक-विज्ञानिक अवतार के जतन या प्रताप से प्रताड़ित या प्रभावित हो मूक हो गया है । इस चुप्पी को तोड़ने के लिए और कवि को कलम और उसके पूरक और प्रेरक पाठकों से जोड़ने के लिए, मैं अपनेआप से वादा करता हूँ, कि कैसे न कैसे हर हफ्ते मैं इसी ब्लॉग पर कोई कविता, कल्पना, टिप्पणी जरूर प्रकाशित करूंगा ।
प्रणाम
विवेक
شركة تنظيف فلل بالطائف
ReplyDeleteشركة تنظيف شقق بالطائف
شركة تنظيف منازل بالطائف
شركة كشف تسربات بالطائف
شركة عزل اسطح بالطائف
شركة تسليك مجاري بالطائف