आज जा कर वोट दे
शाषण को गुप्त चोट दे
प्रजातंत्र में तेरा कर्म यही
कि रहें तेरे प्रतिनिधि सही
जिस समुदाय ने नेता
गुणवत्ता के लिए चुना नहीं
जाती धर्म की फ़ुट डालकर
जो चुनाव में उतरा आदमी
वो क्यों कल न भेद अभेद में
भुला देगा भूखे कृषक खेत में
वो क्यों न अपनी कमाई के लिए
बनाएगा बाँध सेतु बस रेत से
आज जा कर वोट दे
शाषण को गुप्त चोट दे
पाँच साल के राज में जिसने
न कोई प्रगति का काम किया
अपने उस दोषी प्रतिनिधि को
क्यों तूने पल में माफ़ किया
और अगर तूने चुनाव के दिन
था कोई और काम ज़रूरी समझा
तू भुगता है, भुगतेगा अपनी खामोशी
तूने हमेशा अपने वोट है जाने क्यों तुत्छ समझा
क्या जानता नहीं कि वृक्ष गिरता है निरंतर चोट से?
बदल जाता है देश का दुःख रुख सुख मुख एक वोट से!
English and Hindi poetry & prose, published as well as unpublished, experimental writing. Book reviews, essays, translations, my views about the world and world literature, religion, politics economics and India. Formerly titled "random thoughts of a chaotic being" (2004-2013). A short intro to my work: https://www.youtube.com/watch?v=CQRBanekNAo
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