दिल्ली
तुझसे दिल लगाये वो जाये कहाँ दिल्ली?
एक लत है, हर कश में जहर भरती है,
पर चेहरे से हटाये कैसे धुंध-धुंआ दिल्ली ?
धमनियों में रेंगते हुए जीवाणु हैं या विषाणु हैं?
करोड़ों धर्मी-अधर्मी बसाए कैसे यहाँ दिल्ली?
होकर खाख फ़िर शाख, फ़िर ईमारत बना देती है,
कैसे बेबसी भुला बीहड़ में उगाये गुलिस्तान दिल्ली?
हर युग में प्यासा फिरा कोई ग़ालिब, मीर तेरी गली,
क्यूँ अमृत या मह न पिलाए, यमुना, धौला कुआं दिल्ली?
जहाँ अहम् से ऊंचा क़ुतुब मीनार, खून-सा लाल किला है,
वहीँ कैसे पीरों, मीरों, फकीरों को दिलाये जुबान दिल्ली?
ठोकरों के हिस्से में भी इतिहास के जहाँ रोड़े है,
कल की कोखों में कैसे कमल-कल्पना पनापाये वहाँ दिल्ली ?
वेश्याओं की पान्जेबों में कितनी गृहस्थियाँ खनके,
क्यूँ आताताइयों के आगे घुटने टिकाये बेजुबान दिल्ली?
चांदनी चौक से शौक शुरू कर, और जा जमुना पुल पार,
घाम-गाँव गँवा आशाएं रिक्शा में घुमाएं शहंशाह दिल्ली!
अदना है तो अदब देख, सरगना है तो लहू का सबक देख,
हर हुक्के में अदा या विपदा का फलसफा सुलगाये वेवफा दिल्ली |
भूखा रहा न कोई यहाँ, ना यहाँ भर पेट भी कोई खा पाया है,
हसरतें ज़र्रे-ज़र्रे में बड़ी-छोटी छुपाये लुभाए जानेजहाँ दिल्ली |
मुल्क की मल्लिका है, पर क्यूँ दागी, अभागी है, धोखेबाज़ है?
क्यूँ विरासत की सियासत से हुई है बेदर्दी, बेईमान दिल्ली?
अर्जी पढ़ मेरी, एक सूफी सुर में सुरूर में फिर खुद को डूबा,
भूल जा कि है तेरी खूनी हिन्दू-मुसलमानी दास्ताँ दिल्ली |
किस तरकीब से जागेगी तेरे जहन में पाकीज़ा प्रेम की धुनी?
और कितनी मस्जिदें, दरगाहें, मंदिर, बनायें तेरे यहाँ दिल्ली?
विवेक से पूछो तो कहता है तेरे मिट-मिट के उठ जाने में सबक है,
यूँ तलवार, अहंकार माटी में मिलाये-उगाये तुझसा कोई कहाँ दिल्ली ?
2 comments:
The last line just summed thousands of years of History...!!...This is awesome Kaviraj...!!
Delhi has such a long and blood history, and yet the city continues to reinvent itself. Truly, it is an amazing city!
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